नमस्कार

हम कश्मीरी पंडित पिछले कई वर्षों से राजनीति, प्रशासन, न्यायपालिका, सेना, कविता और कलात्मकता और अन्य क्षेत्रों में कई विश्व प्रसिद्ध हस्तियों को जन्म दिया है। समुदाय अच्छी तरह से ना जुड़ने के बावजूद ऊंचाइयों को छू गया परन्तु इस सब में वो कहीं कहीं निजी जिंदगी में पीछे रह गया! कारण गिनने लगे तो बहुत सारे हैं परन्तु मुझे बहुत बडा कारण शादियां ना होना और शादी होके शादी ना चलना जिससे हमारा समुदाय पीछे रह गया और शायद खतम होने की कगार पे हैं ।

फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, डहंदी तथा कई अन्म क्षेत्रीय भार्षाओं में पारंगत कश्मीरी पंडित प्रधान मंत्री, राजनीडतक सलाहकार, न्मायाधीश तथा सडचव रहे हैं पर आज के पररवेश में कहीं पीछे रह गए हैं। यहां मैं अपने भाव व्यक्त कर रही हं डजसक मैने महसूस किया है। 

विस्थापित होने के बाद हम सब ने अस्तित्व के लिऐ लड़ना आरंभ किए और इस लड़ाई में कोइ जम्मू, कोइ बेंगलूर, कोइ दिल्ली और कोइ पूना, पंजाब, मध्य प्रदेश मे बिखर गए! जरूरी भी था वरना हम आज जहां हैं वहां भी ना होते! हमारे बच्चे जो पैदा हुए थे और जो पैदा हो गए विस्थापित होने के बाद अलग अलग माहौल में पल गए। जो पंजाब में पला बडा हुआ उसे वो culture भाने लगा, जो बेंगलूर मे पला बडा उसे वो खाना और culture भाने लगा और जो पूना, माध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, मे पले बड़े हुए उन्हें वहां का culture भाने लगाखाने का स्वाद अलग अलग हो गया, पहनावा अलग हो गया, रहन सहन अलग। किसी को मूली के पराठा, अचार और दही अच्छा लगने लगा और किसी को डाल बाटी और किसी को पोहा ।

भाषा और आचरण में भी अन्तर आया क्योंकि बच्चा स्कूल जाता तो 99% बच्चे एक भाषा और आचरण के और वो अकेला, खेलने जाता तो वैसा ही था तो बच्चे धीमे धीमे उधर की और जाने लगे! बच्चे को कटा महसूस ना करे धीमे धीमे मां, बाप बदलने लगे, घर से पोहा, डाल बाटी, मूली का पराठा टिफन में जाना लगा और बच्चे के साथ वो भाषा बोली जाती जो वो बाहर सब के साथ बोलने लगाइसमें ना बच्चों का दोष है और ना मां बाप का दोष है तो हालात का ।

जब स्वाद बदला रहन सहन बदला भिन भिन हो गया तो इसका प्रभाव सीधा सीधा शादियों पे पड़ा! दिल्ली वाले को जम्मू की लड़की या लड़के से compatibility नही, जम्मू वाले को बैंगलोर वाले से नही और यह सिलसिला बहुत सालों तक चलते रहा ! Late marriages, no marriage और divorces घर घर की कहानी बन गई और यहां तक आ गए परन्तु जहां से वापिस ना मुड़ा जाए हम अभी भी वहां नही हैं । मै हमरी कश्मीरी समुदाय पे और हर इक मां बाप और बच्चों पे गर्व करती हूं और प्रणाम करती हूं जिन्होंने हमारी नई पीढ़ी को संभाला, सशक्त और समर्थ बनाया कि आज 100% literacy rate 0%crime rate है विपरीत और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद ।

हमें एक जुट हो कर जैसी हमने अपने हालातों से लडा पलायन के बाद आज हमे शादियां को लेके जो हालात पैदा हुऐ हैं हमें लड़ना है।

हमारे बड़े बुजर्ग, सब मां, बाप, और बच्चों को आगे आना पड़ेगा और अपना अपना योगदान देना पड़ेगा ! हमारे कुछ लोग इस दिशा में बहुत अच्छा काम करने लगे हैं उनके साथ चलके, उनका हाथ थामने आगे बड़ना पड़ेगा ताकि हमरी नई पीढ़ियां, संस्कृति और समुदाय बच जाए और बना रहे।

रेणूका


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